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बीए सेमेस्टर-2 - अर्थशास्त्र-समष्टि अर्थशास्त्र

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2714
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-2 - अर्थशास्त्र-समष्टि अर्थशास्त्र

अध्याय - 17
फिलिप वक्र
(Philips Curve)

1950 से मुद्रा स्फीति की व्याख्या के सम्बन्ध में एक विवादास्पद विषय रहा है। संक्षेप में यह कहा गया है कि फिलिप्स वक्र बेरोजगारी दर और मौद्रिक मजदूरी की दर में होने वाले परिवर्तन के मध्य सम्बन्ध की व्याख्या करता है। ब्रिटिश अर्थशास्त्री प्रो. ए. डब्ल्यू. फिलिप्स ने अपने इस वक्र के माध्यम से यह स्पष्ट किया कि बेरोजगारी दर तथा मौद्रिक मजदूरी में वृद्धि की दर में विपरीत सम्बन्ध पाया जाता है। अर्थात् बेरोजगारी कम होने पर मौद्रिक मजदूरी में ऊँची दर से वृद्धि होती है और बेरोजगारी अधिक होने पर नीची दर से वृद्धि होती है क्योंकि श्रमिकों की माँग अधिक होने की स्थिति में एवं बेरोजगारी की संख्या कम होने की स्थिति में नियोजक मजदूरी की दर में वृद्धि कर देते हैं। प्रो. फिलिप्स के अध्ययन का प्रमुख उद्देश्य इस बात की जानकारी करना है कि ब्रिटिश अर्थव्यवस्था में मुद्रा स्फीति का प्रमुख कारण लागत प्रेरित या माँग प्रेरित था।

मौद्रिक मजदूरी एवं बेरोजगारी में सम्बन्ध स्थापित करने वाला प्रथम कारण श्रम की माँग है और इसका कारण व्यापारिक क्रियाओं की प्रकृति व्यापारिक क्रियाओं का प्रसार होने की स्थिति में बेरोजगारी कम हो जाती है और श्रमिकों की माँग बढ़ जाती है। इस स्थिति में नियोजक मौद्रिक मजदूरी में वृद्धि कर देते हैं। व्यापारिक क्रियाओं में निम्न स्तर के कारण नियोजक ऊँची मजदूरी देने के प्रति किसी प्रकार का कोई उत्साह नहीं दिखाते हैं।

इसका तीसरा कारण मजदूर संघों एवं प्रबन्धकों की सापेक्षिक मोल-भाव की शक्ति है। यह कारण मौद्रिक मजदूरी एवं बेरोजगारी में सम्बन्ध स्थापित करता है। श्रमिकों की कमी एवं बेरोजगारी की दर में कमी होने पर मौद्रिक मजदूरी में वृद्धि के लिए मजदूर संघों द्वारा दबाव डाला जा सकता है। बेरोजगारी अधिक होने की स्थिति में मजदूर संघ, प्रबन्धकों पर मजदूरी बढ़ाने के लिए दबाव नही डाल सकते हैं।

इसका चौथा कारण जीवन निर्वाह व्यय में होने वाला परिवर्तन है जो फुटकर कीमतों में परिवर्तन के कारण होता है। लेकिन साथ में श्रमिकों की उत्पादकता के बढने की स्थिति में कीमतों में वृद्धि नहीं होती है। ऐसी दशा में एक ओर तो श्रमिकों को ऊँची मजदूरी दी जा सकती है और दूसरी ओर उत्पादन की कीमतों में कोई वृद्धि नहीं होती है। लेकिन जब श्रमिकों की उत्पादकता में वृद्धि की अपेक्षा मौद्रिक मजदूरी की वृद्धि की दर अधिक होती है तो कीमतों में वृद्धि होती है।

प्रो. फिलिप्स ने अपने निष्कर्ष में यह कहा कि बेरोजगारी नीची होने की स्थिति में मजदूरी की दर में तीव्र गति से वृद्धि होती है और बेरोजगारी अधिक होने से मौद्रिक मजदूरी गिरती है तथा मजदूरी की उस दर समय अपरिवर्तित रहती है जब बेरोजगारी 5.5% होती है।

महत्वपूर्ण तथ्य

  • 1950 से मुद्रा स्फीति की व्याख्या के सम्बन्ध में एक विवादास्पद विषय रहा है।
  • फ़िलिप्स वक्र बेरोजगारी दर और मौद्रिक मजदूरी की दर में होने वाले परिवर्तन के मध्य सम्बन्ध की व्याख्या करता है।
  • ब्रिटिश अर्थशास्त्री प्रो. ए. डब्ल्यू. फिलिप्स ने अपने इस वक्र के माध्यम से यह स्पष्ट किया कि बेरोजगारी दर तथा मौद्रिक मजदूरी में वृद्धि की दर में विपरीत सम्बन्ध पाया जाता है।
  • मौद्रिक मजदूरी एवं बेरोजगारी में सम्बन्ध स्थापित करने वाला प्रथम कारण श्रम की माँग है। प्रो. फिलिप्स ने अपने निष्कर्ष में यह कहा कि बेरोजगारी नीची होने की स्थिति में मजदूरी की दर में तीव्र गति से वृद्धि होती है और बेरोजगारी अधिक होने से मौद्रिक मजदूरी गिरती है तथा मजदूरी की उस दर समय अपरिवर्तित रहती है जब बेरोजगारी 5.5% होती है।
  • प्रो. पेचमैन के अनुसार, प्रो. फिलिप्स ने ब्रिटिश अर्थव्यवस्था के सम्बन्ध में बेरोजगारी एवं मजदूरी की दर में जो सम्बन्ध स्थापित किया है, उसे बढ़ा-चढ़ाकर पुष्ट किया है।
  • आलोचकों के मतानुसार फिलिप्स वक्र एक अल्पकालीन विश्लेषण है। इसमें परिवर्तन होता रहता है और इसमें स्थिरता का अभाव पाया जाता है।
  • प्रो. टॉबिन के मतानुसार, फिलिप्स वक्र एक निश्चित सीमा तक तो विद्यमान रहता है, लेकिन जब अर्थव्यवस्था में परिवर्तन होता है तो उसके साथ ही साथ फिलिप्स वक्र भी परिवर्तित होता है तथा एक निश्चित समय के पश्चात् उसका आकार उर्ध्वस्तरीय हो जाता है।
  • मुद्रा स्फीति की व्याख्या में फिलिप्स वक्र 1950 से एक विवाद का विषय है। यह वक्र ब्रिटिश अर्थशास्त्री प्रो. ए. डब्ल्यू. फिलिप्स के नाम पर आधारित है।
  • प्रो. जानसन के अनुसार "फिलिप्स के दृष्टिकोण का मुख्य योगदान यह है कि उन्होंने रोजगार तथा मुद्रा स्फीति के अस्पष्ट एवं सैद्धान्तिक विवेचन के स्थान पर, बेरोजगारी के प्रतिशत तथा मुद्रा स्फीति की दर के सम्बन्ध में एक तथ्यपरक एवं आनुभाविक विवेचन प्रस्तुत किया।
  • प्रो. फ्रीडमैन ने फिलिप्स वक्र विवाद की नीतियों में उपयोगिता केवल अल्पकाल में ही प्रतिपादित की है क्योंकि उनके अनुसार फिलिप्स वक्र विवाद की ऊर्ध्वस्तरीय आकार के कारण दीर्घकाल में बेरोजगारी की दर को प्रभावित नहीं किया जा सकता। किन्तु इस बारे में काफी विवाद भी है।
  • फिलिप्स वक्र के नीति विषयक निहित तत्व अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं। यह वक्र यह सुझाव देता है कि बेरोजगारी के ऊँचे स्तरों के अभाव में स्फीति को नियंत्रित करने के लिए मौद्रिक तथा राजकोषीय नीतियों का प्रयोग किस सीमा तक किया जा सकता है। प्रो. सोलो भी इस बात को तैयार नही हैं कि फिलिप वक्र मुद्रास्फीति के सभी बिन्दुओ पर उर्ध्वस्तरीय होता ही है।

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    अनुक्रम

  1. अध्याय - 1 समष्टि अर्थशास्त्र का परिचय (Introduction to Macro Economics)
  2. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
  3. उत्तरमाला
  4. अध्याय - 2 राष्ट्रीय आय एवं सम्बन्धित समाहार (National Income and Related Aggregates)
  5. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
  6. उत्तरमाला
  7. अध्याय - 3 राष्ट्रीय आय लेखांकन एवं कुछ आधारभूत अवधारणाएँ (National Income Accounting and Some Basic Concepts)
  8. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
  9. उत्तरमाला
  10. अध्याय - 4 राष्ट्रीय आय मापन की विधियाँ (Methods of National Income Measurement)
  11. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
  12. उत्तरमाला
  13. अध्याय - 5 आय का चक्रीय प्रवाह (Circular Flow of Income)
  14. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
  15. उत्तरमाला
  16. अध्याय - 6 हरित लेखांकन (Green Accounting)
  17. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
  18. उत्तरमाला
  19. अध्याय - 7 रोजगार का प्रतिष्ठित सिद्धान्त (The Classical Theory of Employment)
  20. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
  21. उत्तरमाला
  22. अध्याय - 8 कीन्स का रोजगार सिद्धान्त (Keynesian Theory of Employment)
  23. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
  24. उत्तरमाला
  25. अध्याय - 9 उपभोग फलन (Consumption Function)
  26. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
  27. उत्तरमाला
  28. अध्याय - 10 विनियोग गुणक (Investment Multiplier)
  29. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
  30. उत्तरमाला
  31. अध्याय - 11 निवेश एवं निवेश फलन(Investment and Investment Function)
  32. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
  33. उत्तरमाला
  34. अध्याय - 12 बचत तथा निवेश साम्य (Saving and Investment Equilibrium)
  35. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
  36. उत्तरमाला
  37. अध्याय - 13 त्वरक सिद्धान्त (Principle of Accelerator)
  38. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
  39. उत्तरमाला
  40. अध्याय - 14 ब्याज का प्रतिष्ठित, नव-प्रतिष्ठित एवं कीन्सीयन सिद्धान्त (Classical, Neo-classical and Keynesian Theories of Interest)
  41. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
  42. उत्तरमाला
  43. अध्याय - 15 ब्याज का आधुनिक सिद्धान्त (IS-LM व्याख्या) Modern Theory of Interest (IS-LM Analysis )
  44. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
  45. उत्तरमाला
  46. अध्याय - 16 मुद्रास्फीति की अवधारणा एवं सिद्धान्त (Concept and Theory of Inflation)
  47. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
  48. उत्तरमाला
  49. अध्याय - 17 फिलिप वक्र (Philips Curve)
  50. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
  51. उत्तरमाला

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